शुक्रवार, 13 मार्च 2009

इस बार भी होली ऑफिस में ही खेल ली... खेली क्या किसी ने मुट्ठी भर गुलाल चेहरे पर पोत दिया। याद नहीं पड़ता पिछली बार कब होली पर घर गया था। एक अरसा हो गया है घरवालों के साथ होली खेले हुए। सोचा था होली के दिन तो ऑफिस में काम कम होगा, खबरों से राहत मिलेगी। लेकिन किस्मत को मंजूर ना था। एक तो मैच उपर से सियासी गहमागहमी....पूरा दिन इन्हीं खबरों को अपडेट करने में बीत गया। कब शिफ्ट खत्म हुई पता ही नहीं चला। चलो राहत तो मिली, लेकिन ये क्या... रिलीवर तो आया ही नहीं।